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विधानसभा सत्र में उठा जीविका दीदियों का सवाल


बक्सर पत्रिका :- एक बार फिर जीविका दीदियों और सफाईकर्मी संबंधी मामला डुमरांव के माले विधायक डॉ अजीत कुमार सिंह ने विधानसभा के सत्र में उठाया है। विधानसभा के बजट सत्र 2025 के प्रश्नोत्तर काल में जीविका एवं राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार के सौजन्य से सदर अस्पताल, बक्सर व अनुमंडल अस्पताल, डुमराँव सहित अन्य स्वास्थ्य केन्द्रों में साफ-सफाई / हाउसकीपिंग कार्य हेतु जीविका दीदियों का प्रश्न उठाया गया। लेकिन सरकार का जवाब बेहद हास्यास्पद है। आम जनमानस एवं अधिकारियों को भी पता है कि हाउसकीपिंग का कार्य जीविका के माध्यम से ही संचालित हो रहा है, परन्तु जब जीविका दीदियों के भविष्य एवं सामाजिक सुरक्षा की बात की जाती है तो सरकार इससे पल्ला झाड़ रही है। प्रश्न उठाया गया कि जीविका दीदियों को सफाईकर्मियों के बतौर बहाल किया गया है जिनके द्वारा पूर्णकालिक रूप से प्रतिदिन कार्य किया जाता है परन्तु सफाईकर्मियों को 'न्यूनतम मजदूरी अधिनियम' के तहत ना ही तो भुगतान किया जाता है ना ही ईएसआई व ईपीएफ का ही लाभ मिलता है जो पूर्व में सफाईकर्मियों को दिया जाता रहा है। इस पर सरकार का कहना है कि अस्पतालों में जीविका के माध्यम से नहीं बल्कि 'संकुल स्तरीय संघ' के माध्यम से उनके स्वयं सहायता समूह के सदस्यों के द्वारा निष्पादन किया जा रहा है। इतना ही नहीं पहले जो सफाईकर्मी पूर्णकालिक रूप से होने पर मजदूरों को प्राप्त सुविधाओं का लाभ ले रहे थे अब वो लाभ भी जीविका सफाईकर्मियों को नहीं मिलेगा। बिहार के मुख्य्मंत्री नितीश कुमार का ड्रीम प्रोजेक्ट है जीविका जिसके बारे में वो कहते नहीं अघाते हैं कि महिलाओं को हम स्वावलम्बी एवं आत्मनिर्भर बना रहें है। ये सरासर गलत बयानी करतें हैं। बिहार की आधी आबादी ग्रामीण गरीब महिलाओं को सशक्तिकरण के नाम पर मुख्यमंत्री ने मुफ्त का मजदूरी करने वाला बनाकर रखा है। जीविका दीदियों एवं कैडरों को लगभग मुफ्त में दिन रात कार्य कराया जाता रहा है और अपनी पीठ थपथपाते हैं। माननीय मंत्री जी जीरो टॉलरेंस की बात करतें हैं परन्तु सच यह है कि जीविका परियोजना आज पूरी तरह आकंठ भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है जिसपर निचले अधिकारीयों से लेकर मंत्री तक की मौन सहमति है।


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      यह बिहार की आधी आबादी का प्रश्न है कि क्या 'संकुल स्तरीय संघ' के माध्यम से काम होने पर 'श्रम क़ानून' लागू नहीं होंगे? ये जिम्मेदारी किसकी हैं कि काम करने वाले क़ो वाजिब काम का वाजिब दाम मिले और सामाजिक सुरक्षा का पूरा लाभ भी मिले ? सरकार जब भी जनता के सवालों से और अपने फर्जीवाड़े में फंसने वाली होती है तो कह रही है कि 'संकुल स्तरीय संघ' एक स्वतंत्र इकाई है और जब मनमानी करनी हो, किसी को फसाना हो या कमाना हो तो 'संकुल स्तरीय संघ' जीविका द्वारा वित्त पोषित है तथा 'संकुल स्तरीय संघ' जीविका पदाधिकारियों के कंट्रोल में रहेगा। ये बिहार की महिलाओं को हकों की हकमारी है। हम लगातार इसके खिलाफ लड़ते रहेंगे।

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